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गोत्र, प्रवर और जाति का अर्थ

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गोत्र, प्रवर और जाति का अर्थ : वर्तमान समय में असांस्कृतिक शिक्षा पद्धति के कारण लोग अपने गोत्र और प्रवर के ज्ञान से भी अनभिज्ञ हैं। गोत्र क्या है? लोग इसे भी नहीं जानते। इसके कारण सगोत्रीय विवाह करने से उत्पन्न अनुवांशिक विभेद वैवाहिक जीवन को दुष्कर और दुखदायी बनाता जा रहा है। इस दुःखमय वैवाहिक जीवन से हमारी रक्षा पुरुषों को उपेक्षित कर महिला आयोग या महिला आरक्षण जैसे कानून और पाश्चात्य सभ्यता का नकल करने से नहीं बल्कि अपने मूल वैदिक संस्कृति का अनुपालन करने से ही होगा। लेकिन इसके लिए मूल सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा अनिवार्य है। इसके लिए प्रस्तुत है सर्वप्रथम गोत्र और प्रवर का संक्षिप्त परिचय। आदि गोत्रों के नाम  - "जमदग्निर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽत्रिगौतमो।  वसिष्ठः काश्यपागस्त्यौ मुनयो गोत्रकारिणः।।" अर्थात् जमदग्नि, भारद्वाज, विश्वामित्र, अत्रि, गौतम, वशिष्ठ, कश्यप व अगस्त्य आदि सभी आठों ऋषि हमारे आदि गोत्र हैं।  किन्तु गोत्र के अर्थ बताते हुए शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख किया गया है -  "वंश परम्परा प्रसिद्ध पुरुष ब्राह्मणरूपमं गोत्रम।" अर्थात् वंश परम्परा