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अफ़्रीका में कुम्भी कबीलों के पारम्परिक धर्म

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नाइजीरिया में कुम्बी समुदाय का व्यवसायिक प्रतिष्ठान सन्दर्भित लेख के स्त्रोत : विकिपीडिया  सम्पादित, प्रसेनजित सिंह कौशिक अफ्रीकी लोगों की पारम्परिक मान्यताएं और प्रथाएं भारत की तरह ही विविधताओं वाले हैं। अफ़्रीका मानव सभ्यता की उत्पत्ति स्थल होने के कारण सबसे ज्यादा विविध मान्यताओं और परम्पराओं वाले लोगों की धरती है। जिनमें विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग शामिल हैं। [1] [2] आम तौर पर ये परम्पराएं शास्त्रों के बजाय मौखिक हैं जो लोक कथाओं, गीतों, त्योहारों और रीति-रिवाजों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संरक्षित और विकसित होते रहते हैं। [3] [4]  कभी-कभी उच्च और निम्न देवताओं की पहचान में हमारा विश्वास भी शामिल होता है। एक सर्वोच्च निर्माता या शक्ति, आत्माओं में विश्वास, मृतकों की वन्दना, जादू-टोने और पारम्परिक अफ़्रीकी चिकित्सा पद्धति के उपयोग सहित अधिकांश धर्मों को एनिमिस्टिक के रूप में वर्णित किया जा सकता है।[5] [6] विभिन्न सांस्कृतिक समारोहों के साथ बहुदेववादी और सर्वेश्वरवादी पहलू भी [7] [1] मानवता की भूमिका को आम तौर पर अलौकिक के साथ प्रकृति के सामंजस्य के रूप में देखा जात

कौशिक रचित भृगु साठिका

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कौशिक रचित ।  महर्षि भृगु साठिका ।। ✍️ संकलन और सम्पादन, प्रसेनजित सिंह जिनके सुमिरन से मिटै, सकल कलुष अज्ञान। सो गणेश शारद सहित, करहु मोर कल्यान ।। वन्दौं सबके चरण राज, परम्परा गुरुदेव महामना, सर्वेश्वरा, महाकाल मुनिदेव। । बलिश्वर पद वन्दकर, मुनि श्रीराम उर धारि। वरनौ ऋषि भृगुनाथ यश, करतल गत फल चारि। । .🏺🌺🌹🌺🏺 जय भृगुनाथ योग बल आगर। सकल सिद्धिदायक सुख सागर ।। 1 विश्व सुमंगल नर तनुधारी। शुचि गंग तट विपिन विहारी।।2 ।। भृगुक्षेत्र सुरसरि के तीरा। बलिया जनपद अति गम्भीरा। .3 .. सिद्ध तपोधन दर्दरामी। मन-वच-क्रम गुरु पद अनुगामी। .4। तेहि समीप भृगवश्रम धामा। भृगुनाथ ने पूरन कामा। । 5 .. स्वर्ग धाम निकट अति भाई। एक नगरिका सुषा सुहाई। । 6 .. ऋषि मरीचि से उद्गम भाई। यही मह कश्यप वंश सुहाई।।7 ।। ता कुल भयउ प्रचेता नेमी। होय विनम्र संत सुर सेवी।।8 ।। तिनकी भार्या वीरणी रानी। गाथा वेद-प्रसंग बखानी। .9। तिनके सदन दुइ सुत होइ। जनम-जनम के अघ सब खोया। .10। भृगु अंगिरा है दोउ नामा। तेज प्रताप अलौकिक धामा ।। 1 1.. तरुण अवस्था इंटासति भयौ। गुरु सेवा में मन दोउ ल्यौ। .12 करि हरि ध्यान प्रेम रस पागो। आत

राजा मान सिंह और वृन्दावन

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राजा मान सिंह ने  गोविन्द देव मन्दिर बनाते समय बसाया था वृन्दावन ✍️ प्रसेनजित सिंह, पटना राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली और पटना से प्रकाशित पुस्तक "अकबर और तत्कालीन भारत" जिसके संपादक इरफ़ान हबीब हैं, इसके "पुस्तक-समीक्षा" नामक अध्याय के पृष्ठ संख्या ३२३-३२५ में वृन्दावन के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली से १९९६ में प्रकाशित तथा  मार्गरेट एच केस द्वारा सम्पादित पुस्तक "गोविन्ददेव : ए डायलॉग इन स्टोन" के पेज नंबर ३०५ और १९१० ईस्वी में कराची से प्रकाशित पुस्तक रियाजुलं-इस्लाम के पेज नंबर १३-१४  में इस पुस्तक के सम्पादक निकासी-असरार ने भी इसका उल्लेख किया है कि यमुना नदी के किनारे स्थित गोविन्ददेव मन्दिर का निर्माण अम्बेर के राजा मान सिंह ने किया है। जिस जगह पर उन्होंने गोविन्ददेव मन्दिर का निर्माण किया था उस जगह पर वृन्दावन नामक नई बस्ती बसा कर एक धार्मिक बस्ती के रूप में उन्होंने ही वृन्दावन को प्रसिद्धि दिलवाया था।  १९८० ईस्वी में पाकिस्तान के कराची से प्रकाशित पुस्तक रियाजुलं-इस्लाम के सम्पादक बहरुल