कौशिक वारियर पजवन देव

कौशिक गोत्रीय ददवाल राजपूत

पृथ्वी राज चौहान की सुरक्षा के लिए महाराजा जयचंद का
रास्ता रोकते हुए राजा पजवन देव

कहते हैं कि दसवीं-दसवीं शताब्दी के राजा यशपाल (जसपाल) के दूसरे बेटे ने सतलुज नदी के किनारे शिमला में भज्जी और कोटी नामक दो रियासतों को स्थापित किया था। इनमें से कोटी रियासत के वंशज कुटलैहड़िया कहलाते हैं। कुटलैहड़िया समाज के लोगों ने बाद में होशियारपुर की तलहटी में स्थित मनखण्डी और नादौन के इलाके को भी जीत कर कुटलैहड़िया रियासत में मिला लिया था। इस रियासत के मुख्य किला का नाम कोट वल्लभ था। इस रियासत के लोग मूल ब्राह्मण परिवार के थे, लेकिन रियासत के राजा होने के कारण इनकी पहचान राजपूतों के रूप में होने लगी। जबकि इस वंश के लोग मूल कुम्भी बैस वंशीय बड़गाओं (भार्गव) परिवार के ब्रह्मक्षत्रिय कहलाने वाली एक प्राचीनतम जनजाति के हैं, जिन्हें तरणकीशाही ब्राह्मण और बारी ब्राह्मण ने कहा जाता है। इनका गोत्र कौशिक है।विदित हो कि कौशिक विश्वामित्र भगवान का जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था, लेकिन अपने तपोबल के कारण ब्रह्मर्षि की उपाधि पाने के बाद उन्होंने ब्राह्मण के रूप में प्रवेश किया था। तब से उनके वंशज़ ब्राह्मणशाही क्षत्रिय, ब्राह्मणशाही राजपूत, ब्रह्मराव, ब्रह्मक्षत्री, बारी ब्राह्मण, बारी बैस, बार्गी, बार्गीयन और बरहगाओं आदि कई नामों से धारणाएँ जाती हैं। जिला होशियारपुर की पंजाब राज वाटिका के पेज नंबर ६६ के युद्ध से संबंधित अध्याय में पंजाब के आम जन का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि टकरला के ब्राह्मण और अम्बोटा के राजपूत परिवार के लोग भी चौधरी कहलाते थे, लेकिन इनकी जिन आठ शाखाओं को अकबर के द्वारा राय की उपाधि दी गई थी, उन ब्राह्मणों की भी पहचान अन्य राजपूत सरदारों को मिले राय की उपाधि के कारण समाज में राजपूतों के रूप में ही होने लगी। बारी बैस, बार्गी, बार्गीयन और बरहगाओं आदि कई नामों से धारणाएँ जाती हैं।जिला होशियारपुर की पंजाब राज वाटिका के पेज नंबर ६६,७८ और युद्ध में युद्ध से संबंधित अध्याय में पंजाब के आम जन का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि टकरला के ब्राह्मण और अम्बोटा के राजपूत परिवार के लोग भी चौधरी कहलाते थे, लेकिन इनकी जिन आठ शाखाओं को अकबर के द्वारा राय की उपाधि दी गई थी, उन ब्राह्मणों की भी पहचान अन्य राजपूत सरदारों को मिले राय की उपाधि के कारण समाज में राजपूतों के रूप में ही होने लगी। बारी बैस, बार्गी, बार्गीयन और बरहगाएँ आदि कई नामों से धारणाएँ जाती हैं। जिला होशियारपुर की पंजाब राज वाटिका के पेज नंबर ६६,७८ और युद्ध में युद्ध से संबंधित अध्याय में पंजाब के आम जन का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि टकरला के ब्राह्मण और अम्बोटा के राजपूत परिवार के लोग भी चौधरी कहलाते थे, लेकिन इनकी जिन आठ शाखाओं को अकबर के द्वारा राय की उपाधि दी गई थी, उन ब्राह्मणों की भी पहचान अन्य राजपूत सरदारों को मिले राय की उपाधि के कारण समाज में राजपूतों के रूप में ही होने लगी।


दूनी चंद आदि राजाओं का सम्बन्ध आमर रियासत के राजा रतन सिंह के बेटे राजा भारमल की पहली पत्नी से उत्पन्न सन्तानों से कहा जाता है। होशियारपुर की पंजाब राज वाटिका में इस वंश को पूना रियासत के राजवंश के पूर्वज़ों का वंशज बताया गया है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि पूना और आमेर ने दोनों रियासतों के पूर्वज़ एक ही परिवार और एक ही गोत्र के लोगों को बुलाया है। औरंगजेब के खिलाफ दारुकोह का साथ देने वाले धोला रियासत के जिरदार सरदार किशन सिंह बादल जी जो आमेर रियासत के राजा मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा के उत्तराधिकारी और राजा राम सिंह के जयंती पुत्र थे, उनके साथ देने वाले पहाड़ी राजाओं में दूनी चंद जी का नाम था। सबसे पहले लिया जाता है। औरंगजेब द्वारा इनकी जिर छीनत जाने के बाद इन दोनों वीरों के असहाय हो चुके बीबी-बच्चों का लालन-पालन बंगाल रियासत के पटना में स्थित रिपपुन नदी के किनारे स्थित जंगलों में हुआ था। बाद में उस जंगल को साफ कर के मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा की याद में जयबर नामक गाँव बसाया गया और बाद में उन दोनों वीरों के वंशजों ने आसपास की भूमि को भी जीत कर पाँच गाँव और बसा के थे। जिनमें से पाँचो गाँव के नाम हैं - फत्तेपुर, दौलतपुर, सैदनपुर, मसाढ़ी और एकवना। स्वयं को कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण कहने वाले ये लोग स्वरूप काशिक ब्राह्मण हैं लेकिन स्थानीय लोगों में भी इनकी पहचान कौशिक राजपूत के रूप में बनी हुई है। जबकि मैं यज्ञ आदि कार्यों को सम्पन्न करवाने के कारण साधु समाज के द्वारा कौशिक ब्राह्मण के रूप में स्वीकृत और एक उदासी साधु हूँ। लेकिन कई स्थानों पर कौशिकों को ब्राह्मण मानने से इंकार करने वाले पाखण्डियों के द्वारा हमें यज्ञ भाग लेने से आज भी उसी तरह रोक दिया जाता है जिस तरह ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी ने कौशिक विश्वामित्र भगवान को महर्षि बनने के बाद भी ब्राह्मण मानने से इंकार कर दिया था। अपने  अपमान के कारण ही कौशिक विश्वामित्र भगवान! ने राज-पाट त्याग कर तफस्वी बने थे। 


राजा पजवन देव के नाम से विख्यात हमारे पूर्वज़ प्रद्युम्न देव ने जब कन्नौजी राय जय चंद और पृथ्वी राज चौहान के मध्य होने वाले युद्ध के दौरान पृथ्वी राज चौहान के मंत्री, प्रधान सेनापति, मित्र और बहनोई के रूप में संयोगिता के हरण के समय कन्नौज के राजा जय चन्द का रास्ता रोक कर खड़े हो गए थे। तब वीर राजा जय चन्द जी ने उनसे कहा था कि "मैं ब्राह्मणों पर हाथ नहीं उठाता हूँ, इसलिए आप मेरे रास्ते से हट जाइये।" लेकिन पृथ्वीराज चौहान के चाचा कान्हर देव के उस दामाद ने उनका रास्ता नहीं छोड़ा जिसके कारण राजा जय चंद को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी थी। विदित हो कि हमारे पूर्वज़ पजवन देव के वंश में ही मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा का जन्म हुआ था। राजा पजवन देव जब ब्राह्मण थे तो मैं भी ब्राह्मणशाही राजकुल का ही परिवार हूँ।

राजा पृथ्वी राज चौहान संयोगिता का हरण के दौरान




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