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भारतवर्ष के नामकरण का क्या है असली सच

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भारतवर्ष का नामकरण दुष्यंत के बेटे भरत के नाम पर नहीं हुआ था इथियोपियाई माउण्टेन मेरू का नामकरण मेरू नामक जिस पौराणिक देवी के नाम पर हुआ था, उसी देवी के पुत्र भरत के नाम पर नामकरण हुआ था भारतवर्ष का। Mount Meru in Tanzania Mount Meru in Tanzania आदि मनु के नाम से विख्यात स्वयंभू मनु के पौत्र प्रियवर्त के परपौत्र ने भारतवर्ष को बसाया था। वायुपुराण के अनुसार स्वयंभू मनु के पुत्रों प्रियवर्त और उत्तानपाद में से ज्येष्ठ पुत्र प्रियवर्त जो जम्बूदीप के राजा थे, उन्हें जब कोई पुत्र नहीं हुआ तब वे अग्निन्ध्र नामक अपने दौहित्र (पुत्री के पुत्र) को अपना दत्तक पुत्र बना कर पालन-पोषण किये थे। प्रजावत्सल अग्निन्ध्र के पुत्र नाभि का विवाह मेरू नामक जिस देवी के साथ हुआ वे भी जम्बूदीप नामक उसी लोक की रहने वाली थी जहां की प्राचीन सभ्यता के लोगों को आज भी पुरातत्वविद God of Kush कह कर पुकारते हैं। हालांकि जम्बूदीप का एक छोटा सा भाग ही कुश नामक राजा के नाम पर कुश देश के नाम से प्रसिद्ध हुआ था। लेकिन इस देश के अस्तित्व में आने से हजारों साल पहले नाभि की पत्नी मेरू के गर्भ से जिस ओजस्वी पुत्र का जन्म हुआ ...

आर्यों की मूल भूमि है अजर्बैज़ान

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सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु की जन्म भूमि है अजर्बैज़ान का बाकु  बाकू के मन्दिर में मिली नटराज की प्रतिमा बाकू के आतिश टेम्पल में निर्मित अग्निकुण्ड में स्थित हजारों वर्ष प्राचीन अखण्ड अग्नि Baku, Azerbaijan https://maps.app.goo.gl/31Vc4i72H8ePC4UG8 सूर्य वंशी राजा इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न एक दुराचारी राजा! अपने छोटे भाई हर्यश्व और उनकी पत्नी मधुमति को अपने राज्य (बाकु) से निकाल दिया था। तब वे वनों में भटकते हुए पूरब के देश सौराष्ट्र की ओर चले गए थे। वहाँ के इन्द्र! दानव राज मधु थे। जब वन में भटकते हुए बहुत समय बीत गया तब उनकी पत्नी ने हर्यश्व को समझाते हुए कहा था - "इस तरह श्रीहीन होकर वन-वन भटकने के बजाए मेरे माता-पिता के पास चल कर मदद माँगना चाहिए। इस तरह कब तक अपनी सच्चाई छुपाते रहेंगे? लेकिन हर्यश्व ने अपने कुल को बदनामी से बचाने के साथ-साथ ससुराल वालों की दया पर जीने से भी इंकार करते हुए अपनी पत्नी को अपने पितृलोक में जाने की अनुमति दे दिये थे। लेकिन दानवेन्द्र मधु की बेटी ने यह कहते हुए अपने पिता के पास जाने से इंकार कर दिया था कि स्त्री अपने जीवन में एक ही पुरुष की कामना...

ताजमहल और अम्बेर रियासत का असली सच

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लेखक, शोधकर्ता एवम उदासी सन्त स्वामी सत्यानन्द उर्फ़ प्रसेनजित सिंह कौशिक 24 नवंबर 1675 की तारीख गवाह बनी थी कुम्भी बैस वंशीय एक सिख सरदार के सरदार बने रहने की।  दोपहर का समय और जगह चाँदनी चौक दिल्ली में लाल किले के सामने जब मुगलिया सल्तनत के सबसे नीच शासक की क्रूरता देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था, तब भी उस सनकी शासक के डर से लोग चुपचाप फैसले का इंतजार कर रहे थे। वह शासक मिर्ज़ा राजा जय सिंह बाबा की छल पूर्वक हत्या करवाने वाला वह कायर था, जिसने सल्तनत के लिए अपने भाईयों की हत्या कर के अपने पिता और पुत्र तक को कारागार में डाल दिया था। वह नराधम इस्लाम के विस्तार के नाम पर अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए बाधक बन रहे सिखों के गुरू श्री तेग बहादुर सिंह जी के खिलाफ़ जो फैसला सुनाने वाला था, उसे जानने के लिए लोगों का जमघट काज़ी के उस मंच की ओर लगा हुआ था, जहाँ तेग बहादुर जी का फैसला होने वाला था। सबकी साँसे उस परिणाम को जानने के लिए अटकी हुई थी जिसके मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर जी इस्लाम कबूल कर लेते तब बिना किसी खून-खराबे के सभी सिखों को मुस्लिम बनना पड़ता।  औरंगजेब ...

कौशिक रचित भृगु साठिका

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कौशिक रचित ।  महर्षि भृगु साठिका ।। ✍️ संकलन और सम्पादन, प्रसेनजित सिंह जिनके सुमिरन से मिटै, सकल कलुष अज्ञान। सो गणेश शारद सहित, करहु मोर कल्यान ।। वन्दौं सबके चरण राज, परम्परा गुरुदेव महामना, सर्वेश्वरा, महाकाल मुनिदेव। । बलिश्वर पद वन्दकर, मुनि श्रीराम उर धारि। वरनौ ऋषि भृगुनाथ यश, करतल गत फल चारि। । .🏺🌺🌹🌺🏺 जय भृगुनाथ योग बल आगर। सकल सिद्धिदायक सुख सागर ।। 1 विश्व सुमंगल नर तनुधारी। शुचि गंग तट विपिन विहारी।।2 ।। भृगुक्षेत्र सुरसरि के तीरा। बलिया जनपद अति गम्भीरा। .3 .. सिद्ध तपोधन दर्दरामी। मन-वच-क्रम गुरु पद अनुगामी। .4। तेहि समीप भृगवश्रम धामा। भृगुनाथ ने पूरन कामा। । 5 .. स्वर्ग धाम निकट अति भाई। एक नगरिका सुषा सुहाई। । 6 .. ऋषि मरीचि से उद्गम भाई। यही मह कश्यप वंश सुहाई।।7 ।। ता कुल भयउ प्रचेता नेमी। होय विनम्र संत सुर सेवी।।8 ।। तिनकी भार्या वीरणी रानी। गाथा वेद-प्रसंग बखानी। .9। तिनके सदन दुइ सुत होइ। जनम-जनम के अघ सब खोया। .10। भृगु अंगिरा है दोउ नामा। तेज प्रताप अलौकिक धामा ।। 1 1.. तरुण अवस्था इंटासति भयौ। गुरु सेवा में मन दोउ ल्यौ। .12 करि हरि ध्यान प्रेम रस पागो...

राजा मान सिंह और वृन्दावन

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राजा मान सिंह ने  गोविन्द देव मन्दिर बनाते समय बसाया था वृन्दावन ✍️ प्रसेनजित सिंह, पटना राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली और पटना से प्रकाशित पुस्तक "अकबर और तत्कालीन भारत" जिसके संपादक इरफ़ान हबीब हैं, इसके "पुस्तक-समीक्षा" नामक अध्याय के पृष्ठ संख्या ३२३-३२५ में वृन्दावन के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली से १९९६ में प्रकाशित तथा  मार्गरेट एच केस द्वारा सम्पादित पुस्तक "गोविन्ददेव : ए डायलॉग इन स्टोन" के पेज नंबर ३०५ और १९१० ईस्वी में कराची से प्रकाशित पुस्तक रियाजुलं-इस्लाम के पेज नंबर १३-१४  में इस पुस्तक के सम्पादक निकासी-असरार ने भी इसका उल्लेख किया है कि यमुना नदी के किनारे स्थित गोविन्ददेव मन्दिर का निर्माण अम्बेर के राजा मान सिंह ने किया है। जिस जगह पर उन्होंने गोविन्ददेव मन्दिर का निर्माण किया था उस जगह पर वृन्दावन नामक नई बस्ती बसा कर एक धार्मिक बस्ती के रूप में उन्होंने ही वृन्दावन को प्रसिद्धि दिलवाया था।  १९८० ईस्वी में पाकिस्तान के कराची से प्रकाशित पुस्तक रियाजुलं-इस्लाम के सम्पादक बहरुल...